Sunday, November 6, 2011

लौट आओ प्रिय ,दे दो मुझे सिर्फ अपनी स्नेह्छाया...



तुम मेरे क्या हो,ये मै कह नही सकती,
पति,अच्छे दोस्त या उससे बढ़कर,
कल्पना जो किया था हकीकत में पाया था ,
तुम्हे पाकर मेरा रोम-रोम मुस्कुराया था.
मै जिद्दी थी हठी थी,पाषाड़ सी -बनी थी,
पर तेरे स्नेह की गर्मी से मोम-सी पिघली थी.
तुमने मुझे मेरे होने का अहसास कराया था.
कुछ भी कर गुजरने का साहस जगाया था.
वो सबकुछ मिला मुझको जो तुमने देना चाहा.
खुशियों का शिखर और गम की तलछाया,
पर मेरे मन ने हाहाकार सा मचाया
लौट आओ प्रिय ,दे दो मुझे सिर्फ अपनी स्नेह्छाया
.

-Rajlakshmi Nandini g[25/12/06]